Saturday 25 March 2017

ऑटोरिक्शा पे बकवास

दिल्ली में नाइधर से उधर जाने के बड़े विकल्प हैंआप समझ नहीं पाएँगे के कौनसा तरीका अख्तियार करेंद्रुतगति से भागते हुए ऑटो को रोक कर दरख्वास्त करेंसाइकिल रिक्शा लेंमेट्रो लें या फिर फ़ोन निकाल के एप से टैक्सी बुलाएं और रौब से ऐसे बैठें जैसे ज़िन्दगी में कभी कार से नीचे कदम ही नहीं रखा होमेट्रो में जाने का आम आदमी का एक नुकसान ये है की मेट्रो के ए ऍफ़ सी गेट से जैसे ही आप अन्दर दाखिल होते हैंआप भारतीय नहीं रह जातेन आपका दीवार को गुटखे की पीक से रंगने का जी करता हैन ही आप पाउच और पन्नी यहाँ वहां गिराते चलते हैंअन्दर कूड़ेदान भी नहीं मिलेगा तब भी आप अपना कचरा साथ ले जाते हैंकुछ बहादुरबिरले वीर ही होते हैं जो मेट्रो को गन्दा करने की कुव्वत रखते हैंउन जवानों और बूढों को मेरा सलाम है.
साइकिल रिक्शा पे दिल्लीवाले दया कर के बैठते हैं कि गरीब का घर चल जाएगासाइकिल रिक्शा का ही विकसित पोकीमोन स्वरुप है ई-रिक्शाइसपे आप जान हथेली पर रख कर बैठ जाइएमाशा अल्लाह सस्ते दाम में और जल्द से जल्द आपको मंजिल पे दे पटकेगा.
ऑटो की शान में जितना कहूं उतना कम हैऑटो में इंसान बैठता नहींवक़्त और हालत उसे बैठाते हैंपहले तो आपको ऑटोवाले से मिन्नत करनी होती है वो अपनी मंजिल और आपकी मंजिल के एक कर लेकुछ बेवक़ूफ़ लोग मीटर से चलने बोल देते हैं और वो चल देता हैआपको पीछे छोड़ करदिल्ली में हैं तो ये मत कहिये कि भैया मीटर से चलोकहियेभैया मीटर से दस ऊपर ले लेनाये संवाद ऑटोवाले के लिए खुल जा सिमसिम सरीखा कोड होता है.
ऑटो को यातायात के नियमों में भी छूट मिली हुई हैआप कार लिए हैं तो लाल बत्ती पे रुकना होगापर यदि आप ऑटो में हैं तो कूद कर फुटपाथ पर चढ़ जाइये और वहां से ऑटो मोड़ कर बत्ती पे सब गाड़ियों के आगे ले आइयेसारी गाड़ियाँ मुंह बाए देखती रहेंगी आप सर घुमाइएअगर आस पास पुलिसवाला नहीं है तो द्रुत गति से निकाल दीजिये अपना ये अनोखा तिपहिया वाहन.
ऑटो में यदि आप महिला मित्र के साथ हैं तो सिग्नल पर रोमांस के काफी मौके उपलब्ध कराये जाते हैंएक बिखरे बाल लिए बच्चा आपको फूलों का दस्ता देगाकहेगा कि वो भगवान् से दुआ करेगा की आपकी जोड़ी सलामत रहेफिर चाहे आप बहन या सहेली के साथ ही क्यूँ न बैठे होंउसको मतलब गुलाब बेचने से हैआप ध्यान मत दीजिये तो वो आगे बढ़ जाएगाफिर आ जाएँगे कुछ और लोग ताली बजा बजा कर दुआ देतेआपने मांगी हो या न मांगी होदुआ मुफ्त मिलेगीऔर फिर मिलेगा मुफ्त ये डायलाग कि "अबे दे न चिकने!" ऑटो में ये सुविधा उपलब्ध हैकार में तो आप शीशा चढ़ा लेंगेऑटो में क्या चढ़ाएंगेऑटो में बैठना हो तो नियम कहता है की चलते ऑटो को रोकोरुका ऑटो अपने रुके होने का किराया भी आपसे वसूलेगापर ये कोई नहीं बताता की चलता ऑटो रोकने के लिए कुछ अर्हताएं होनी चाहिएपहले तो बुलंद आवाज़ जो एक बार चीखने पे ऑटो पट्ट से रुक जायेदूसरा धैर्य क्यूंकि ज़रूरी नहीं कि आप जहाँ जाइएगा वहां ऑटो को भी जाना होगाऑटो का अपना मन होता है.
दिल्ली के ऑटोवाले फिर भी शरीफ हैंबंगलौर में मैंने ऑटो लिया था जिसने मुझसे तीन किलोमीटर के पांच सौ रुपये लिए थेमंगलौर के ऑटोवाले तो ओला उबर वालों को मार मार के भुर्ता बना देते हैं की स्साले हमारी सवारी बिठाएगादिल्ली में ऐसी मार पिटाई का कोई रिवाज नहीं हैबहुत ज्यादा ऑटो हैं और कुछ का धंधा नहीं भी चलता पर शराफत से रहते हैंताकते हैं जब कोई ओला या उबर से निकल के कैशलेस पेमेंट करता हुआहोठों को गोल कर के सीटी बजाता हुआ निकल जाता हैहसरत भरी नज़र से वो उसे देखते हैं और मन ही मन सोचते होंगे के बेटा जिस दिन पेटीएम् में साढ़े तीन सौ रुपैया नहीं होगातब हम ही याद आएँगे.

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