Wednesday 11 January 2012

पहल

कुलबुलाते सागर ने जब रेत को तराशा,
सीपों की खाली जेबों को तलाशा,
तो खाली सीप हंस दी,
एक कंकर बाहर लुढ़क आया
बस? इतना सा?
सागर हैरान था.
सीप मुस्कुराई,
बोली बस इतना ही था,
न ज्यादा न कम,
एक कंकर से तू क्या करेगी?
यह तो इतने बड़े साहिल में कहीं खो जायेगा
सीप चुप थी,
साहिल को फुर्सत न थी,
वो अपनी मौज में था.
सीपी बोली- इतने बड़े साहिल का,
एक कतरा मैंने चुराया है.
अब बताना मुश्किल है,
के मैं साहिल से निकली हूँ,
या साहिल मेरा साया है.
सागर की समझ में थोडा बहुत आया,
तभी एक लहर आई और सीप से टकराई

एक कंकर फिर से, सीपी से लुढ़क आया.

 




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